Feb 1, 2009

प्लास्टिक बैगों हमें ख़त्म कर रहे हैं

Introduction:
"आपने अपने पूरे जीवन में जितना भी प्लास्टिक इस्तेमाल किया है, हर छोटे से छोटा टुकड़ा, जहाँ उसकी कोई ज़रूरत भी नहीं थी, वो आज भी हमारे पृथ्वी पर मौजूद है और धीरे-धीरे इसका दम घोंट रहा है"


इस साल के शुरू में ही दिल्ली सरकार ने प्लास्टिक बैगों के उपयोग पर रोक लगा दी है. शायद ये कदम २०१० में होने वाले कौमनवेल्थ खेलों को ध्यान में रख कर बनाये गए हैं, पर कईयों का मानना है कि ये कदम तो सरकार को बहुत पहले उठाना चाहिए था.

प्लास्टिक बैग खरीदारों और दुकानदारों के बीच खासे प्रचलित हैं क्योंकि ये सुविधाजनक, हल्के, मज़बूत व सस्ते होते हैं व खाने-पीने की चीज़ें और दूसरे सामान ढोने के लिए एक साफ़-सुथरा जरिया भी होते हैं. पर क्या कभी आपने गौर किया है कि प्लास्टिक बैग हमें कितना नुक्सान पहुंचाते हैं? सरकार ने प्लास्टिक बैगों पर पाबन्दी तो लगा दी है, पर इन चीज़ों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती, जिससे कि आम आदमी ये समझ नहीं पाता कि ये साधारण सा दिखने वाला, छोटा सा प्लास्टिक का बैग हमारे इतने बड़े पर्यावरण को क्या नुक्सान पहुँचा सकता है, और हम कैसे अपने जरा से आराम के लिए इस तहस-नहस में शामिल हैं. और जब तक कि हम ये समझ न लें हम इस मुहिम में दिल से शामिल नहीं हो सकते, और तब तक ये मुहिम सफल भी नहीं हो सकती.

प्लास्टिक बैगों की उपयोगिता एक छोटे समय के लिए ही होती है, और इसके बाद वो फेंक दिए जाते हैं. पर क्या आप जानते हैं की जैविक कूड़े के विपरीत, प्लास्टिक बैगों को गल कर पर्यावरण में वापिस मिलने के लिए कम से कम एक हज़ार वर्ष लगते हैं. इसीलिए ये कूड़े की तरह साल दर साल हमारे पर्यावरण में इकट्ठे होते रहते हैं. पूरे विश्व में हर रोज़ अरबों-खरबों प्लास्टिक के बैग फेंके जाते हैं और आप समझ सकते हैं की धीरे-धीरे हमारी ज़मीन, वन, नदियाँ, झीलें, तालाब, आदि सब इस घिनौने प्लास्टिक से भरते जा रहे हैं. ये न सिर्फ़ देखने में भद्दे लगते हैं, पर ये इन नदियों, वनों और उनमें रहने वाले प्राणियों और पेड़-पौधों का दम घोंटते जा रहे हैं.

क्या आप जानते हैं की हर वर्ष १,००,००० लाख से ज़्यादा जीव जंतु सिर्फ़ प्लास्टिक खाने से मर रहे हैं. इन जीव जंतुओं में सिर्फ़ हमारे मवेशी ही नहीं, परन्तु, वनों, नदियों, सागरों व झीलों में रहने वाले डॉल्फिन, व्हेल, कछुए, घोंघा, हिरन, पेंग्विन इत्यादि शामिल हैं. हमारे शहरों, गावों में भी हजारों गायें, कबूतर, व दूसरे पशु पक्षी इनका शिकार हो रहे हैं. जब ये प्लास्टिक बैग उड़ कर इन पशु पक्षियों के मुहं पर चिपक जाते हैं, तो उनकी दम घुटने से मृत्यू हो जाती है.

क्या आपने कभी किसी हरे भरे वन में प्लास्टिक के अनगिनत बैगों को हर तरफ़ बिखरे हुए देखा है -- ये बहुत भद्दे लगते हैं. और इनमे पानी वगरेह इकठ्ठा होने से कीटाणु भी जन्म लेते हैं जो इन वनों में रहने वाले पशु पक्षियों को और नुक्सान पहुंचाते हैं.

हमारी अपनी यमुना नदी भी इस प्लास्टिक के कहर से दूषित होती जा रही है, पर सरकार के पुलों पर ऊंचे-ऊंचे बाड़ लगाने के बावजूद हम इसमे प्लास्टिक बैग फेंकते हैं.

प्लास्टिक पेट्रोलियम व दूसरे प्राकृतिक गैसों से बनाया जाता है. जितना प्लास्टिक सिर्फ़ हमारे भारत में रोज फेंका जाता है, उसे बनाने में ही कई करोड़ गैलन तेल की खपत होती है. ये हमारे पेट्रोलियम के सीमित साधनों पर ज़बरदस्त बोझ हैं.

प्लास्टिक को लचीला बना कर बैगों का आकार देने में और इसे रंग करने में लेड और दूसरे विषैले रसायनों का उपयोग होता है. ये रसायन हमें कई तरह से नुक्सान पहुंचाते हैं. जब हम इनमे लाये खाने के पदार्धों का सेवन करते हैं तो ये रसायन उनमे मिल कर हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और तरह-तरह की बीमारियों को जन्म देते हैं. यहाँ तक कि एक रिसर्च से ये भी पता लगा है कि ये रसायन अजन्मे बच्चों को भी नुक्सान पहुँचा सकते हैं.

जब ये प्लास्टिक बैग जलाये जाते हैं तो ये जहरीले गैस बन कर हमें और नुक्सान पहुंचाते हैं. साथ ही पशु-पक्षियों को भी.

हमारी टीम ने जब पूर्वी दिल्ली के इलाकों का दौरा किया तो पाया कि अभी भी हर तरह के प्लास्टिक बैग धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहे हैं. छोटे-मोटे व्यापारियों, सब्जी वालों इत्यादि को तो इस बैन के बारे में मालूमात ही नहीं है. लोगों से बात करने पर हमने पाया कि उनके इस बैन को लेकर मिले-जुले विचार हैं. व्यापारी और खरीदार दोनों का मानना है कि इससे उन्हें दिक्कत तो आयेगी. पर बहुत से लोग इस बैन की ज़रूरत भी समझते हैं.

तो अब समय है उन कपडे के झोलों को दोबारा कार्यान्वित करने का. हमारे पुराने तौर-तरीके काफ़ी बेहतर थे. ये झोले पेपर बैगों से बेहतर हैं, क्योंकि, एक तो ये मज़बूत होते हैं, दूसरा, पेपर बैगों को बनाने को बनाने में जंगल के जंगल सफाया हो जाते हैं. और इनमे भी बहुत से रसायनों का प्रयोग होता है. तो आईये कहें, हमारे देशी झोले जिंदाबाद!

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